गोवा माइनिंग पीपुल्स फ्रंट (जीएमपीएफ) गोवा में 2018 से खनन गतिविधियों पर लगी रोक के कारण खनन पर निर्भर 300000 लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए लगातार लड़ रहा है। खनन गतिविधियां रुकने से इनकी आजीविका खत्म हो गई है या उस पर संकट मंडरा रहा है। लोगों की राय जानने के लिए खनिज मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर ‘खनन सुधारों के लिए प्रस्ताव का नोट’ नाम से जारी किए गए केंद्र सरकार के नोटिस पर प्रतिक्रिया देते हुए जीएमपीएफ ने केंद्र सरकार को गोवा दमन एवं दीव खनन रियायत (खनन पट्टा उन्मूलन एवं घोषणा अधिनियम), 1987 में संशोधन करने एवं इसके पूर्वप्रभावी (रेट्रोस्पेक्टिव) होने के मौजूदा प्रावधान में संशोधन करते हुए इस उन्मूलन कानून को 1987 से आगे की परिस्थितियों के अनुकूल बनाने पर विचार करने का अनुरोध किया है। यह सुझाव गोवा राज्य सरकार के रुख के अनुरूप ही है, जिसने 2018 से अब तक कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिखकर विधायी सुधार/संशोधन की मांग की है, जिसमें इस उन्मूलन कानून को भविष्य के अनुकूल बनाते हुए पट्टे की अवधि को 2037 तक करने को कहा गया है (यह एमएमडीआर कानून, 2015 के तहत तय किए गए 50 साल के बराबर होगा)। इस सुधार से गोवा भी इस मामले में एमएमआरडी कानून 2015 के संशोधन के अनुरूप देश के अन्य राज्यों की बराबरी पर आ जाएगा, क्योंकि मौजूदा असमानता के कारण गोवा के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों को खनन पट्टे 50 साल तक के लिए बढ़ाने या रीन्यू करने का अधिकार है, जो पहले 20 साल था। यह सुझाव प्रस्तावित सुधारों के लक्ष्य को हासिल करने, विकास को गति देने, रोजगार बढ़ाने और कोविड-19 के खतरनाक दुष्प्रभाव से अर्थव्यवस्था को उबारने में भी मददगार होगा।
डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड), नियम एवं दिशानिर्देश में संशोधन को लेकर जीएमपीएफ ने जोर देते हुए कहा है कि कृषि योजनाओं के अतिरिक्त रोजगार के अन्य विकल्प पैदा करने के लिए फंड का इस्तेमाल होना चाहिए, जिससे खनन वाले क्षेत्रों में रोजगार के अन्य टिकाऊ अवसर भी बन सकें। यह काम कौशल विकास प्रशिक्षण, विशेष शैक्षणिक कार्यक्रमों, स्थानीय उद्यमियों व स्वयं सहायता समूहों को माइक्रो फाइनेंस एवं क्रेडिट देकर किया जा सकता है, जिससे खनन से इतर रोजगार के वैकल्पिक माध्यमों में काम करने वाले नए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलेगा।
खान मंत्रालय द्वारा जारी नोट में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खनन सेक्टर में कई नीतिगत सुधारों का उल्लेख किया गया है, जिसका उद्देश्य निजी निवेश बढ़ाना, संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना और खनिज क्षेत्र में रोजगार एवं पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना है। गोवा अभी महामारी के कारण पैदा हुई स्थिति में पर्यटन उद्योग के समक्ष आए संकट के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की स्थिति का सामना कर रहा है। इस वजह से खनन गतिविधियों पर लगी रोक के कारण पहले से ही आजीविका पर मंडरा रहा संकट और बढ़ गया है और इसलिए राज्य में खनन गतिविधियां तत्काल प्रारंभ करने की जरूरत है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिरता एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता फिर बहाल हो सके।
जीएमपीएफ के प्रेसिडेंट श्री पुती गांवकर ने कहा, ‘हम खनिज क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों पर आम जनता, राज्य सरकारों, खनन उद्योग एवं अन्य संबंधित लोगों की राय लेने के खान मंत्रालय के इस कदम की सराहना करते हैं। गोवा खनन उद्योग और खनन पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका को पूर्व में केंद्र सरकार की ओर से किए गए सभी नीतिगत सुधारों में अनदेखा किया गया है और इस बार भी यही दिख रहा है कि खनिज क्षेत्र के इन प्रस्तावित सुधारों में गोवा के हित में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह संभवत: राज्य एवं केंद्र सरकार के बीच संवाद की कमी के कारण हो रहा है, लेकिन यह बहुत चिंताजनक बात है क्योंकि खनन पर प्रतिबंध लगने के बाद से पिछले कुछ वर्षों में राज्य की अर्थव्यवस्था पर गंभीर दुष्प्रभाव के बावजूद गोवा के खनन उद्योग और गोवा की अर्थव्यवस्था की व्यापक स्तर पर केंद्र सरकार द्वारा अनदेखी हुई है। इसलिए हमने केंद्रीय मंत्रालय को ‘गोवा दमन एवं दीव खनन रियायत (खनन पट्टा उन्मूलन एवं घोषणा कानून), 1987 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है। हमने केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा खनिज क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों में इसे जोड़ने का सुझाव दिया है, जिससे एमएमआरडी कानून संशोधन, 2015 के तहत गोवा भी खनन पट्टों के नवीकरण या विस्तार के मामले में अन्य राज्यों की बराबरी पर आ जाएगा। इस संशोधन में उन्मूलन कानून 1987 के पूर्वप्रभावी (रेट्रोस्पेक्टिव) मौजूदा प्रावधानों को भविष्य आधारित करते हुए यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि गोवा में खनन पट्टों को 2037 तक विस्तार दिया जा सकता है (यह एमएमडीआर कानून संशोधन 2015 में तय 50 साल के प्रावधान के अनुरूप होगा)।’
श्री गांवकर ने आगे कहा, ‘डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड), नियम एवं दिशानिर्देश में संशोधन की दिशा में हमने इस बात पर जोर दिया है कि इस फंड का इस्तेमाल खनन से जुड़े इलाकों में टिकाऊ आजीविका की जरूरत को देखते हुए रोजगार के वैकल्पिक साधन तैयार करने में हो। हमने एक ही उद्योग पर निर्भर रहने का दुष्परिणाम देख लिया है और वही गलती दोबारा नहीं दोहराई जानी चाहिए।’
विभिन्न अनुमानों के मुताबिक गोवा को पिछले दो साल में खनन गतिविधियों पर रोक के कारण 7000 करोड़ रुपये के लगभग का राजस्व नुकसान हुआ है। महामारी फैलने से पहले ही गोवा देश का सर्वाधिक बेरोजगारी दर वाला राज्य था और अब महामारी के कारण पर्यटर उद्योग पर पड़े दुष्प्रभाव के कारण बेरोजगारी कई गुना बढ़ गई है। अगर खनन गतिविधियों को तत्काल शुरू नहीं किया गया तो राजस्व के मामले में राज्य के लिए पटरी पर लौट पाना बहुत मुश्किल होगा और यहां के लोगों को बेरोजगारी के गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा। गोवा के लोगों समक्ष मौजूद इस अप्रत्याशित संकट को देखते हुए तत्काल खनन गतिविधियां प्रारंभ कराने के लिए केंद्र सरकार से इन संशोधनों की दरकार है।