इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (IIHS), एक राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान, ने राजस्थान महिला कामगार यूनियन (RMKU) के साथ घरेलू कामगारों के किराये की आवास व्यवस्था (रेंटल हाउसिंग अरेंजमेंट RHA) पर एक स्टडी की हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (IIHS), जो कि एक राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान है, और राजस्थान महिला कामगार यूनियन (RMKU) ने ‘जयपुर में घरेलू कामगारों की किराये के आवास की व्यवस्था’ नामक एक रिपोर्ट लॉन्च की । इस रिपोर्ट को (सरकारी प्रतिनिधि का नाम), यूनियन के सदस्यों, रिपोर्ट के लेखकों –
किंजल संपत और निधि सोहाने, और IIHS के स्कूल ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के एसोसिएट डीन गौतम भान की उपस्थिति में लॉन्च किया गया जिसके बाद एक पैनल के साथ चर्चा हुई।
स्टडी में जयपुर में 103 रेंटल हाउसिंग अरेंजमेंट (RHA) को पढ़ा गया था जिनमें घरेलू कामगार रहते हों । बाद के चरणों में घरेलू कामगारों की गतिशीलता और उनके किराये के आवास पर कोविड-19 के प्रभाव का भी अध्ययन किया गया।
यह रिपोर्ट अर्बन लोकल बॉडीज़ (ULB), किरायेदारों और ज़मीनी स्तर पर काम करते श्रमिक संगठनों को शामिल करने के इरादे से तैयार की गई है ताकि श्रमिकों के रहने की स्थिति में सुधार किया जा सके।
रिपोर्ट घरेलू कामगारों के लिये किराये के आवास और उनके अध्ययन के तरीकों पर तीन मुख्य बातों पर ज़ोर देती है।
मुख्य जांच परिणाम:
घरेलू कामगारों के लिये, आवास से रोजगार की करीबी उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि आवास की गुणवत्ता और उसका किफ़ायती होना। विभिन्न व्यावसायिक समूहों के लिये आवास और काम अलग-अलग तरीकों से जुड़े हुऐ होते हैं। यह अध्ययन घरेलू कामगारों के सन्दर्भ में आवास और काम के संबंध पर केंद्रित है।
1. कम आय वाले और प्रवासी कामगारों के लिये, खास तौर से घरेलू कामगारों के लिये, उनके आवास और उनके काम के बीच एक संबंध है।
क. रहने की जगह पाने का सबसे आम तरीका किराए पर घर लेना (रेंटल हाउसिंग) है।
ख. घरेलु कामगारों के काम की विशेषता की वजह से, उनके लिये अपने कार्यस्थल के पास रहना ज़रूरी होता है। इसलिए, अधिकांश कामगारों के विपरीत, उनका आवास शहर के कुछ ही हिस्सों में नहीं, बल्कि पूरे शहर में — खासकर मध्यम और उच्च आय के हिस्सों में — पाया जा सकता है ।
2. आवास मात्र मकान या इमारत से बढ़ कर है — आवास मकान के उपरान्त मूलभूत सुविधाएँ, समुदाय और सामाजिक सुविधाएँ — जो कि सम्पूर्ण तरीके से जिंदगी जीना मुमकिन बनाती हैं — शामिल होते हैं । इस दृश्टिकोण से परखें तो ज़्यादातर घरेलु कामगार ‘सेटअप’ में रहते हैं — न कि ऐसे मकानों में जिनमें ये सभी चीज़ें मकान के स्तर पर ही शामिल हों। अगर ‘सेटअप’ को ही आवास का मात्रक या यूनिट माना जाए, तो पानी और स्वच्छता को सुधारने पर केंद्रित सरकारी योजनाएं बड़े पैमाने पर परिणाम ला सकती हैं। मकानमालिक, किराएदार और सरकार का एक तीनपक्षीय मंच इन ‘सामुदायिक’ सुविधाओं को सुधारने के तरीकों पर विचार कर सकता है । इसका मकानमालिक और किरायेदारों के रहने की अवस्था पर सीधा और सकारात्मक असर होगा ।
क. सर्वे में शामिल 54% लोगों के लिए पाया गया कि पानी के एक नल पर 50-100 जन तक निर्भर थे। इसको सुधारने से रहने की अवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
ख. लगभग 80 % घर सरकार द्वारा लगाए बिजली के दाम से कई ज़्यादा बिजली के दाम देते हैं। इसका मतलब है कि रियायती दरों पर बिजली की सप्लाई का लाभ कामगारों तक नहीं पहुँच पाता है।
3. एक औसत घरेलू कामगार परिवार लगभग 2500 रुपये प्रति माह किराये के रूप में भुगतान करता है जिसमें अक्सर बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा की लागत शामिल नहीं होती है। यह शहरी, अनौपचारिक कार्यकर्ता द्वारा कमाये जाने वाले 10,000 रुपये प्रति माह के औसत वेतन का 25 प्रतिशत है। भले ही किराया एक निश्चित लागत है, सामाजिक सुरक्षा का कोई मॉडल नहीं है जो इसे ध्यान में रखता हो। इस आय सीमा में किराये को भोजन, बुनियादी आय और स्वास्थ्य देखभाल की तरह ही सामाजिक सुरक्षा का एक बुनियादी अधिकार माना जाना चाहिये। रोटी, कपड़ा, ठीक है लेकिन मकान का क्या?
4. जब 95% से अधिक किराये का कोई कानूनी या बाध्यकारी अनुबंध नहीं है तो रहने की स्थिति बेहतर करने के बारे में हम कैसे सोच सकते हैं? यह समझना जरूरी है कि किस प्रकार का लिखित समझौता या एग्रीमेंट अनौपचारिक रेंटल हाउसिंग अरेंजमेंट में किरायेदारों और मकान मालिकों, दोनों, की सुरक्षा के लिये उचित होगा।
यूनियन और रिपोर्ट के लक्ष्य क्या हैं?
1. किराये के लये आर्थिक समर्थन/रियायत (सब्सिडी) पर केंद्रित पायलट कार्यक्रमों की दिशा में नीति चर्चा को आगे बढ़ाना।
क. सामाजिक सुरक्षा हक़ के भाग के रूप में किराया।
ख. एक खास योजना जो विभिन्न प्रकार के अनौपचारिक कामगारों की किराये की स्थिति सुधारने के लिये रची हो।
2. किराये के आवास (रेंटल हाउसिंग) को राष्ट्रीय आवास मिशनों (नेशनल हाउसिंग मिशन) और राज्य सार्वजनिक आवास कार्यक्रम (स्टेट पब्लिक हाउसिंग प्रोग्राम) का हिस्सा होना चाहिये। किराये के आवास पर केंद्रित नए प्रोग्राम भी बनाए जाएँ ।
3. अर्बन लोकल बॉडीज़ (ULB) की प्रोग्राम अमल करने में भूमिका बढ़ाई जाए और उनकी वित्त व्यवस्था की क्षमता भी मजबूत और विस्तारित करी जाएँ ।
4. इन योजनाओं की रचना और अमल करने की प्रक्रिया में कामगार संगठनों से सलाह करी जाए और उनको शामिल किया जाए ।