कई बार सामान्य सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड जांच कराने पर हमें पता चलता है कि हमारी किडनी में भी छोटी-छोटी गांठे बनी हुई है। इन गांठों से मरीज को कोई लक्षण सामने नहीं आते लेकिन वे चिंतित हो जाते हैं कि क्या यह नुकसानदायक हो सकती हैं? लेकिन घबराने वाली बात नहीं है। अगर किडनी में छोटी गांठें बनी हुई हैं तो उनकी लेप्रोस्कोपी से सर्जरी कर उन्हें निकाला जा सकता है। लेकिन इसके इलाज को नजरअंदाज करना आगे जाकर मरीज के लिए परेशानी खड़ा कर सकता है क्योंकि यही छोटी गांठे बड़ी जाती हैं और कैंसर का रूप भी ले सकती हैं। वहीं कुछ गांठें बिना कैंसर की भी होती है जो पानी से भरी होती हैं। ये गांठे नुकसानदेह नहीं होती हैं।
गांठ को बढ़ने से पहले ही निकालना उचितः रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल के यूरोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. देवेंद्र शर्मा ने बताया कि जांच में अगर सॉलिड गांठ 0.5 से एक सेमी की हो तो उसे तभी निकालकर मरीज को आगे होने वाले कैंसर के खतरे से बचाया जा सकता है। छोटी गांठ निकालने से पूरी किडनी को बचाया जा सकता है क्योंकि गांठ के बड़े होने पर पूरी किडनी निकालनी पड़ती है। दोनों सर्जरी ओपन, लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक पद्धति से की जा सकती हैं।
लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक सर्जरी से आसान हुआ उपचारः आमतौर पर किडनी की छोटी गांठों की समस्या 70 वर्ष से अधिक उम्र के मरीजों में दिखाई देती है लेकिन स्मोकिंग, मोटापा या पारिवारिक कारणों से कम उम्र के लोगों को भी यह समस्या होने लगी है। ऐसे में लेप्रोस्कोपी और रोबोटिक्स द्वारा पार्शियल नेफेक्टॉमी द्वारा मरीज की किडनी से गांठ निकाली जा सकती है। वहीं हाई इंटेनसिटी फोकस अल्ट्रासाउंड (हिफु) द्वारा भी बिना चीरा लगाए छोटी गांठों को अंदर ही खत्म किया जा सकता है।