जोधपुर के 65 वर्षीय सुरेंद्र सिंह (परिवर्तित नाम) के लिए जयपुर के डॉक्टर्स नई आशा लाने वाले बने। नौ साल पहले हुए फ्रेक्चर की दो सर्जरी भी हुई जो फेल हो गई। यही नहीं, फ्रेक्चर जोड़ने के लिए उन्हें दो बार लगाई गई प्लेट तक टूट गई जिसके बाद वे पूरी तरह से बिस्तर पर आ गए। लेकिन शहर के रुकमणी बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने इस बेहद जटिल केस को सफल बनाया और उन्हें वापस से चलने योग्य बना दिया। हॉस्पिटल के सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. ललित मोदी के नेतृत्व में यह केस किया गया।
घुटने के ठीक ऊपर हुआ था फ्रेक्चर — डॉ. ललित मोदी ने बताया कि 2014 में मरीज का घुटने के ठीक ऊपर से फ्रैक्चर हुआ था जिसे डिस्टल फीमर फ्रैक्चर कहते हैं। फ्रैक्चर को ठीक करने के लिए स्थानीय अस्पताल में सर्जरी भी हुई थी जिसमें प्लेट लगाकर हड्डी को जोड़ने की कोशिश की गई थी लेकिन हड्डी नहीं जुड़ी और प्लेट भी टूट गई। फिर 2019 में उनकी दोबारा सर्जरी की गई लेकिन वह ऑपरेशन भी फेल हो गया और प्लेट टूटने से जिससे मरीज पूरी तरह से बिस्तर पर आ गए। सामान्य दैनिक कार्यों के लिए भी वे दूसरों पर निर्भर हो गए। कई जगहों पर दिखाने पर भी उन्हें निराशा हाथ लगी क्योंकि सब जगह उनकी हड्डी जुड़ने की संभावना को मना कर दिया गया।
सर्जरी में था बेहद जोखिम — जब यहां रुकमणी बिरला हॉस्पिटल में उन्हें सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. ललित मोदी को दिखाया गया तो पूरी जांचें करने के बाद उन्होंने एडवांस नी रिप्लेसमेंट सर्जरी करने का निर्णय लिया। सामान्य नी रिप्लेसमेंटमें जहां सिर्फ जॉइंट की कोटिंग बदली जाती है। इस सर्जरी में मरीज की टूटी हुई जांघ की फीमोरल हड्डी को भी रिप्लेस किया गया। डॉ. ललित मोदी ने बताया कि सर्जरी में सबसे बड़ा चैलेंज था कि प्लेट टूटने पर जो उसके भाग आपस में टकराकर घिस रहे थे तो मेटल चूरे के रूप में आस-पास के सॉफ्ट टिश्यू में जा रहे थे जिसके कारण उनके घुटने का जोड़ अंदर से काला हो गया। ऐसे में प्रभावित टिश्यू को भी निकाला गया। इस दौरान पास की खून की नसों और नर्व को सावधानी से बचाते हुए टिश्यू को निकाला गया। हड्डी इतनी गल गई थी कि प्लेट के स्क्रू भी बाहर निकल चुके थे। सर्जरी में दो से ढाई घंटे का समय लगा। ऑपरेशन के अगले दिन ही मरीज ने चलना फिरना शुरू कर दिया। केस को सफल बनाने में ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. हितेश जोशी और एनेस्थीसिया में डॉ. रुचि वैध का विशेष सहयोग रहा।