विश्व में अस्थमा के कारण होने वाली मृत्यु का 42 प्रतिशत हिस्सा भारत का है। यानी अगर विश्व में अस्थमा के कारण 100 लोगों की मृत्यु होती है तो उनमें से 42 लोग भारत के होते हैं जो कि काफी बड़ा आंकड़ा है। इन्हेलर को लेकर फैली भ्रांतियों के कारण भारत में अस्थमा अनियंत्रित हो रहा है जोकि काफी चिंतनीय हैं। विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश गोदारा ने यह जानकारी दी।
इस बार की थीम अस्थमा केयर ऑफ ऑल – डॉ. राकेश गोदारा ने बताया कि अनियंत्रित अस्थमा के अधिकांश मरीज कम और मध्यम आय वाले देशों में देखने को मिलता है। इसका सबसे बड़ा कारण इन्हेलर कोर्टिकोस्टेरॉइड का इस्तेमाल करने को लेकर भ्रांतियां हैं। लोगों में स्टेरॉइड को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं। जबकि पिछले कुछ समय में हुईं स्टडीज में यह सिद्ध किया जा चुका है कि जो मरीज बिना स्टेरॉइड वाले इन्हेलर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें अस्थमा से होने वाली मृत्यु का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है। बिना स्टेरॉइड वाले इन्हेलर लेने से सांस की नली की सूजन ठीक नहीं होती, सिर्फ सांस लेने में आराम मिलता है जोकि खतरनाक हो सकता है। डॉ. राकेश गोदारा ने बताया कि इन्हेलर कोर्टिकोस्टेरॉइड ही मुख्य इलाज है जोकि अब भी देश के अधिकांश मरीज़ों को नहीं मिल पाता है। अगर कम तीव्रता वाले अस्थमा का सही ढंग से इलाज नहीं लिया जाए तो उसमें भी मरीज को गंभीर लक्षण हो सकते है।
बायोलोजिक्स इंजेक्शंस बनें गंभीर अस्थमा के इलाज में मददगार – अस्थमा के ऐेसे मरीज जो नियमित रूप से इन्हेलर लेते हैं फिर भी उन्हें फायदा नहीं होता है और परेशानी बरकरार रहती है, बार बार अस्थमा के अटैक आते है| ऐसे मरीजों को डॉक्टर जाँच करके गंभीर अस्थमा की श्रेणी में रखते हैं एवं ऐसे मरीजों के लिए बायोलोजिक इंजेक्शन नए ट्रीटमेंट के रूप में आए है।
जिन अस्थमा पेशेंट्स में ईओसिनोफिल और IgE लेवल बढ़ा हुआ रहता है, इनके लिए ये बायोलोजिक्स फायदेमंद रहते हैं। रिसर्च बताते हैं कि इनसे अस्थमा के मरीजों को राहत मिलती है। इनसे अस्थमा की परेशानी कंट्रोल की जा सकती है और इन्हेलर की डोज कम की जा सकती हैं |