दिन-प्रतिदिन बढ़ते काम-काज के बीच व्यक्ति के शारिरिक लक्षणों में बदलाव आना एक स्वाभाविक क्रिया हो सकती है, मगर इन्हें नजरअंदाज करना कई गंभीर बीमारी को न्योता देने का कारण बन सकता है। इन्हीं लक्षणों में एक पैरों में दिखने वाली बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी हरी नसें हैं, जिन्हें वैरिकाज़ नसों के नाम से जाना जाता है, जो आकार में छोटे या बड़े हो सकते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 40 प्रतिशत वयस्क वैरिकाज़ नसों से पीड़ित हैं, जिनकी संख्या दुनिया भर में लगातार बढ़ रही है। अगर समय के साथ इनका इलाज नहीं किया गया तो पीड़ित व्यक्ति में रक्तस्राव, थक्के जमने, और अल्सर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यही नहीं इससे पीड़ित व्यक्ति अपने पैरों की बदसूरती से भी प्रभावित होता रहता है।
इस बारे में फ्लोकेयर डायग्नोस्टिक एंड इंटरवेंशन के एंडोवास्कुलर एवं इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र बंसल ने कहा कि गोंद चिकित्सा उत्साहजनक है और पारंपरिक लेजर या आरएफए उपचार की तुलना में इसके कई फायदे हैं। इस चिकित्सा के दौरान रोगी को केवल 2-3 मिमि. की एक हल्की सी चुभन के अहसास से गुजरना पड़ता है। उसी दिन रोगी ऑपरेशन शियेटर से बाहर आ जाता है, और वापस अपने काम पर भी जा सकता है। यह चिकित्सा लगभग 95 प्रतिशत तक लंबी अवधि के लिये सफल साबित होती है।
वैरिकाज़ नसों से पीड़ितों की संख्या जिस तरह तेजी से बढ़ रही हैं, इसके उपचार के लिये कई सकारात्मक प्रयास भी किये जा रहे हैं। इसी के तहत वैरिकाज़ नसों के इलाज के लिये भारत में पहली बार एफडीए द्वारा स्वीकृत नवीन गोंद चिकित्सा शुरू की गई है।
वैरिकाज़ नसों के इलाज के लिये अपनायी गई गोंद चिकित्सा के लिये आसान बाह्य रोगी प्रक्रिया में अस्पताल में भर्ती की जरूरत नहीं होती है। गोंद चिकित्सा के बाद सूजन, दर्द और सुन्न होने का बेहद कम अहसास होता है, और व्यक्ति में तेजी से स्वास्थ्य लाभ देखने के लिये मिलता है। इसलिये जरूरी है कि अगर कोई व्यक्ति तकलीफदेह वैरिकाज़ नसों से परेशान है तो अपने डॉक्टर से वैरिकाज़ नसों के सही उपचार के लिये सलाह ले और एक स्वस्थ जीवन की राह में आगे बढ़े ।