Monday, May 12, 2025

प्रवासियों के लिए भारत में बसना हुआ आसान, जबकि भारतीयों के लिए विदेश में जाकर रहना मुश्किल

विदेश जाने वाले भारतीयों में से सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 33 फीसदी लोग इस बात से सहमत नहीं हैं कि उन्हें मेजबान देश में “स्थानीय लोगों जैसा महसूस होता है”, जबकि ठीक इसी तरह 31 फीसदी लोग अपनेपन की भावना को लेकर आश्वस्त नहीं हैं हमारे सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले प्रवासियों को भारत में बसने में वैश्विक औसत (8.3 महीने) से कम समय (7.4 महीने) लगता है, जबकि विदेश में बसने वाले 4 में से 1 भारतीय का कहना है कि उन्हें लगभग तुरंत ही घर जैसा महसूस होने लगता है (28 फीसदी)।

जेफ्री एल कोहेन, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी प्रोफेसर और अपनेपन यानी बिलॉन्गिंग से जुड़े मनोविज्ञान के विशेषज्ञ एचएसबीसी के नए अभियान का समर्थन करते हैं- उन्होंने नई जगह पर अपनेपन की भावना विकसित करने के बारे में अपने सुझाव भी साझा किए एचएसबीसी ने लॉन्च कीअनफॉरेन एक्सचेंज जो एक नई मुफ्त डिजिटल कम्युनिटी है, ताकि अंतरराष्ट्रीय नागरिकों को ऐसे स्थानीय जानकारी हासिल करने में मदद की जा सके जो इंटरनेट पर उपलब्ध न हो.यह नई कम्युनिटी अच्छी तरह दुनिया घूम चुके एचएसबीसी एंबेसडर्स की ओर से दिए जाने वाले मूल्यवान सुझाव और सलाह उपलब्ध कराती है। इन एंबेसडर्स में टेनिस स्टार एमा राडुकनू और रग्बी खिलाड़ी ब्रायन ओड्रिसकॉल जैसी हस्तियों के साथ-साथ दुनिया के अलग-अलग देशों में घूम चुके एचएसबीसी कर्मचारी भी शामिल हैं

जब बात भारत में बसने की हो, तो भारत में आने वाले अंतरराष्ट्रीय नागरिकों को कहीं अधिक आसानी का अनुभव होता है। यहा जानकारी एचएसबीसी के एक नए शोध में सामने आई है जिसमें किसी नए देश में बसने और अपनेपन का अहसास करने के प्रमुख कारणों का पता लगाया गया है।

भारत में बसने वाले प्रवासियों में से80 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्हें यहां बसने में एक वर्ष से भी कम समय लगा-वे भारत के ही रहने वाले हैंयह अहसास आने में उन्हें औसतन 7.4महीने लगते हैंजो कि 8.3महीने के वैश्विक औसत से कम है। सर्वे में शामिल प्रवासियों में से 36 फीसदीलोगों को तुरंत ही घर जैसा महसूस होने लगता है, 23 फीसदी लोगों को इसमें 6 महीने सेभी कम समय लगा और 21 फीसदी लोगों को 6 महीने से लेकर एक वर्ष तक का समय लगा।

इस अध्ययन के बारेमें संदीप बत्राहेडवेल्थ एंड पर्सनल बैंकिंगएचएसबीसी इंडियाने कहा, “एचएसबीसी में हम किसी नए देश में बसने के लिए जाने पर व्यक्ति के सामने आने वाली चुनौतियों को अच्छी तरह समझते हैं। चूंकि मैंने खुद विदेश में समय बिताया है, ऐसे में मैं विस्थापन की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकता हूं, भले ही वहां हमें बेहतरीन अनुभव और अच्छे दोस्त मिलें। काम या पढ़ाई के लिए विदेश में रहे अपने सहकर्मियों औरदोस्तों के अनुभवों के आधार पर हम”अनफॉरेन एक्सचेंज”प्रयास की शुरुआत करने के लिए प्रेरित हुए। यह प्रयास ऐसे दौर से गुज़र रहेलोगों को समुदाय और अपनेपन का अहसास कराने के लिए शुरू किया गया है और इसके लिए उन्हें एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाता है, ताकि वे सोशल मीडिया पर अपनी कहानियां साझा करसकें और नए परिवेश में अच्छी तरह बसने और अन्य लोगों के साथ जुड़ने के तरीकों के बारेमें हमारे साझेदारों और सहकर्मियों से सलाह ले सकें। हम चाहते हैं कि वे घर जैसा महसूसकरें और जब वे विदेश जाएं तो उन्हें अपनेपन का अहसास हो।”

इस अध्ययन से मिली जानकारी के बारे मेंस्टैनफर्ड प्रोफेसर एवं बिलॉन्गिंग- द साइंस ऑफ क्रिएटिंग कनेक्शन एंड ब्रिजिंग डिवाइड्स के लेखक जेफ्री एल कोहेन ने कहा, “किसी दूसरे देश में जाकर रहना रोमांचक और समृद्ध करने वाला अनुभव हो सकता है, लेकिन यह मुश्किल भी होता है। मुख्य चुनौती सिर्फ व्यावहारिक समस्या नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक भी है-घर बनाने का काम। घर एक भौतिक जगह होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक स्थिति भी है जिसे अपने मन के अहसास की मदद से परिभाषित किया जाता है यानी व्यापक समुदाय का स्वीकार्य हिस्सा होने का अहसास। ऐसे में लोगों के लिए धैर्य रखना और खुद पर दबाव न डालना महत्वपूर्ण होता है। अच्छी तरह बस जाने के लिए वे पर्याप्त समय ले सकते हैं – इसके साथ ही कुछ मददगार रणनीतियों के साथ इस प्रक्रिया को और भी आसान बनाया जा सकता है। एचएसबीसी रिसर्च से विदेश में बसने पर लोगों के सामने आने वाली भावनात्मक बाधाओं का पता चलता है। अकेलापन एक प्रमुख कारण है जिसकी वजह से कुछ लोगों को लगता है कि उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुई है और दूसरी तरफ नए देश में अपनेपन का अहसास होने से लोगों को लंबे समय तक टिकने की प्रेरणा मिलती है।

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